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Tuesday, June 17, 2014

दिल की कलम से

 
जानकर भी अंजान बनते हो,
समझ कर भी नासमझ,
कैसे समझोगे तुम,
जब शब्दो पे ही अटके रहते हो,
 
दिल मे दुविधा है,
आँखो मे नमी,
पलको पे सपने है,
कानो मे ध्वनि,
इसी को सोच हम रो दिए,
आँसुयो की जगह कलम से,
काग़ज़ पर ये
शब्द बिखेर दिए |
 
किसी ने कभी सही कहा था,
कि दिखता है मंज़र असली,
बजते है साज़ सारे,
जब छेड़ दो तार दिल के,
नही मालूम क्यू,
तुमने आवाज़ दी,
और हम रो दिए,
आँसुयो की जगह कलम से,
काग़ज़ पर ये
शब्द बिखेर दिए |

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